गेहूं के खेती की संपूर्ण जानकारी, बोने का समय, उन्नतशील किस्म, सिंचाई, खरपतवार एवं रोग नियंत्रण, उपज

Vishesh Varta (विशेष वार्ता)
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 गेहूं की खेती

गेहूं के पौधे का वानस्पतिक नाम ट्रिटिकम एस्टीवम (Triticum aestivum) है।

कुल- पोएसी (Poaceae)/ग्रेमिनी/घास कुल

एकबीजपत्री (Monocots) पौधा है।

उत्पति स्थलः- दक्षिणपश्चिमी एशिया 


पुष्प क्रम का प्रकार :- Spike

फल का प्रकार :- कैरयोप्सिस (Caryopsis) 

प्रोटीन का प्रतिशत :- 8-15%

कार्बोहाइड्रेट का प्रतिशत: 62-71%

खेत/ जमीन की तैयारी

पिछली फसल की कटाई के बाद खेत की अच्छे तरीके से ट्रैक्टर की मदद से या  देशी हल से जुताई की जानी चाहिए। खेत को आमतौर पर ट्रैक्टर के साथ तवियां जोड़कर जोता जाता है और  उसके बाद दो या तीन बार हल से जोताई की जाती है। खेत की जोताई शाम के समय की जानी चाहिए और जुताई की गई ज़मीन को पूरी रात खुला छोड़ देना चाहिए ताकि वह ओस की बूंदों से नमी सोख सके।


बुवाई का समय 

इसकी बुवाई 10-15 नवम्बर से कर सकते है।


प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

  • जल्दी से बोई जाने वाली किस्म 

गेहूं की नई किस्म HD 3385

गेहूं की यह किस्म अधिक उपज देने वाली किस्म है. अगर समय पर इस गेहूं की बुवाई की जाती है तो गेहूं अनुकूल परिस्थितियों में प्रति हेक्टेयर 80-100 क्विंटल तक की पैदावार देती है.


डीबीडब्ल्यू 187 किस्म की अधिकतम पैदावार क्षमता 65 कु./ हेक्टेयर प्राप्त हुई है । रोग प्रतिरोधकता डीबीडब्ल्यू 187 भूरे रतुआ रोग के लिए प्रतिरोधी होने के साथ-साथ पीला रतुआ रोग के लिए भी प्रतिरोधी है। डीबीडब्ल्यू 187 के दानों में 10 / 10 ग्लू स्कोर तथा 11.4 प्रतिशत प्रोटीन पाई जाती है ।

DBW की बुवाई किसान 10-15 नवम्बर तक कर सकते है 

मिट्टी- दोमट , बालूइ दोमट उपर्युक्त होती है


PBW 752: यह देरी से बोई जाने वाली किस्म है। जो कि सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 19.2 क्विंटल प्रति एकड़ है।


PBW 1 Zn: इस किस्म के पौधे का कद 103 सैं.मी. होता है। फसल 151 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 22.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


UNNAT PBW 343: यह किस्म सिंचित क्षेत्रों और समय पर रोपाई के लिए उपयुक्त है। पकने के लिए 155 दिनों का समय लेती है। यह किस्म जल जमाव, करनाल बंट के प्रतिरोधी है और ब्लाईट को भी सहने योग्य है। इसकी औसत पैदावार 23.2 क्विंटल प्रति एकड़ है।


WH 542: यह किस्म समय पर बुवाई करने और सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह धारी जंग, पत्ती जंग और करनाल बंट के लिए प्रतिरोधी है। इसकी औसत पैदावार 20 क्विंटल प्रति एकड़ है।


PBW 725: यह किस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गई है। यह एक बौनी प्रकार की किस्म है और समय पर बोयी जाने वाली और सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह पीले और भूरे जंग की प्रतिरोधी है। इसके दाने मोटे, सख्त और मध्यम गहरे रंग के होते हैं। यह 155 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 23 क्विंटल प्रति एकड़ है।


PBW 677:  यह किस्म 160 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 22.4 क्विंटल प्रति एकड़ है।


HD 2851: यह किस्म समय पर उगाने योग्य किस्म है और सिंचित क्षेत्रों में उगाई जाती है। यह किस्म 126-134 दिनों में पक जाती है और इस किस्म का कद 80-90 सैं.मी. होता है।


WHD - 912: यह दोहरी छोटे कद की किस्म है जो उदयोग में बेकरी के लिए प्रयोग की जाती है। इसमें प्रोटीन की मात्रा 12 प्रतिशत होती है। यह किस्म पीले, भूरे जंग के साथ करनाल बंट के भी प्रतिरोधी है। इसकी औसत उपज 21 क्विंटल प्रति एकड़ है।


HD 3043: इस किस्म की औसत उपज 17.8 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह किस्म पत्तों के ऊपर पीले धब्बे और पीली धारियों की बीमारी से काफी हद तक रहित है। इस किस्म से अच्छे ब्रैड का निर्माण होता है।


WH 1105: इसकी खोज पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा की गई है। यह एक छोटे कद की किस्म है जिसमें पौधे का औसतन कद 97 सैंमी तक होता हे। इसके दाने सुनहरे, मध्यम, सख्त और चमकदार होते हैं। यह पत्तों के पीलेपन और भूरेपन की बीमारी से रहित है। परंतु यह दानों के खराब होने और बालियों के भूरे पड़ने की बीमारी के प्रति संवेदनशील है। यह लगभग 157 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 23.1 क्विंटल प्रति एकड़ है।


PBW 660: पंजाब खेती बाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा पंजाब राज्य के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में गेंहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए इसकी खोज की गई है। यह एक छोटे कद वाली किस्म है। जिस में पौधेका औसतन कद 100 सैंमी तक होता है। इसके दाने सुनहरे, मध्यम, सख्त और चमकदार होते हैं और इससे अच्छी किस्म की रोटियां भी बनती है। यह पत्तों के पीलेपन और भूरेपन की बीमारी से रहित होती है परंतु यह बालियों के भूरे पड़ने की बीमारी के प्रति संवेदनशील है। यह लगभग 162 दिनों में पक जाती है। इसकी औसत पैदावार 17.1 क्विंटल प्रति एकड़ है।


PBW-502: यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित की गई है। यह समय पर बोने और सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह धारी जंग और पत्ती जंग के प्रतिरोधी है।


HD 3086 (PusaGautam): इसकी औसत पैदावार 23 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह पीली और भूरी जंग के प्रतिरोधी है। अच्छे किस्म के  बरैड बनाने के सभी गुण/तत्व इसमें मौजूद हैं। 


HD 2967: यह बहुत बड़े कद की किस्म है जिसमें पौधे का औसतन कद 101 सैंमी होता है। इसके दाने सुनहरे, मध्यम, सख्त और चमकदार होते हैं। यह लगभग 157 दिनों में पक जाती है। यह पत्तों के पीलेपन और भूरेपन से रहित है। इसकी औसत पैदावर 21.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।


DBW17: इसके पौधे का कद 95 सैं.मी. होता है। इसके दाने सख्त, मध्यम और चमकदार होते हैं। यह पीले और भूरेपन से रहित है। यह 155 दिनों में पक जाती है। इसकी औसत पैदावार 23 क्विंटल प्रति एकड़ है। 


PBW 621: इस किस्म को पंजाब के सभी क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह किस्म 158 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पीली और भूरी कुंगी के प्रतिरोधक है। इस किस्म का औसतन कद 100 सैं.मी. होता है।

UNNAT PBW 550: इस किस्म को पंजाब के सभी क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह किस्म 145 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पीली और भूरी कुंगी के प्रतिरोधक है। इस किस्म का औसतन कद 86 सैं.मी. होता है। इसकी औसतन पैदावार 23 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

PBW 175: इसे पंजाब के सभी क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह किस्म 165 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म कुंगी और करनाल बंट बीमारियों के प्रतिरोधक है। इसका औसतन कद 110 सैं.मी. होता है।

PBW 527: इसे पंजाब के सभी क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह किस्म 160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पीली और भूरी कुंगी के प्रतिरोधक है। इसका औसतन कद 100 सैं.मी. होता है।

PDW 291: इसे पंजाब के सभी क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह किस्म 155 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पीली और भूरी कुंगी, कांगियारी और झूठी कुंगी बीमारियों के प्रतिरोधक है। इसका औसतन कद 83 सैं.मी. होता है।

PBW 590: यह किस्म पंजाब के सभी क्षेत्रों में उगाई जाती है। यह 128 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पीली और भूरी कुंगी रोगों के लिए प्रतिरोधक किस्म है। इसका औसतन कद 80 सैं.मी. होता है।

PBW 509: यह पंजाब के उप पर्वतीय क्षेत्रों को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्रों में उगाई जाती है। यह किस्म 130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पीली और भूरी कुंगी रोगों के लिए प्रतिरोधक किस्म है। इसका औसतन कद 85 सैं.मी. होता है।


देर से बोई जाने वाली किस्में - HD-293, RAJ-3765, PBW-373, UP-2338, WH-306, 1025

गेहूं की अच्छी पैदावार लेने के लिए जलवायु 

तापमान 21-26°C होना चाहिए 

वार्षिक वर्षा 750 MM की आवश्यक होती है


गेंहू की सिंचाई की छ: क्रांति अवस्था होती है 

किसान भाई गेंहू की बुवाई के बाद पहली बार सिंचाई 21-25 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए। इस समय फसल में मुख्य जड़े बनती हैं। 

दूसरी सिंचाई बुवाई के 40-45 दिनों के बाद करना चाहिए।


खाद एवं उर्वरक 

गोबर की खाद 10 टन/ हेक्टर की अवश्यक होती है 

उर्वरक- N:P:K, 120:60:40 / हेक्टर की अवश्यक होती है


गेहूं रोग और लक्षण

1.भूरा रतुआ( पक्सीनिया रिकॉन्डिटा ट्रिटीसाई)

लक्षण:- रोग के प्रारंभ में पत्तियों की ऊपरी सतह पर नारंगी रंग के सूई की नोक के समान बिंदु, बिना क्रम के उभरते हैं, जो बाद में और घने हो जाते हैं। ये पत्तियों एवं पर्णवृतों पर गहरे भूरे रंग के रूप में फैल जाते हैं।

ये रोग का नियंत्रण जल्द ही कर देना चाहिए 

2.पीला रतुआ,

3.खुआ तथा बंद कंड, 

4.सीरियल सिस्ट निमेटोड

नियंत्रण

बीज उपचार:-  भारतीय किसान अपने पास संग्रहित बीज से ही गेहूं उगाते हैं या साथी किसानों से लेते हैं। इसलिए यह अति आवश्यक हो जाता है कि बीज का उपचार भलीभांति किया जाए। 

इसके लिए एक कि.ग्रा. बीज को कार्बोक्सिन (वीटावेक्स 75 डब्ल्यू.पी. 2.5 ग्राम) या टेबुकोनेजोल (रैक्सिल 2 डी.एस. और कार्बोन्डाजिम (बाविस्टीन 50 डब्ल्यू.पी. 2.5 ग्राम) बायोएजेन्ट कवक (ट्राइकोडर्मा विरिडी 4 ग्राम) मिलाकर उपचारित करें।

या सभी किसान अपने कृषि गोदाम से बीज ले 

*खाड़ी फसल में उपचार*:-प्रॉपीकोनाजॉल (टिल्ट 25 ई.सी.) का 0.1 प्रतिशत घोल या टेबुकोनेजोल 250 ई.सी. का 0.1 प्रतिशत या हेक्साकोनाजॉल  दर से घोल कर छिड़काव करें


खरपतवार नियंत्रण

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के लिए 2 4-D का  250 मि.ली.  को 150 लीटर पानी में घोलकर प्रयोग करें।

  कर सकते है 

गेहूं का मामा/ गेहूंसा  यानी फलारिस माइनर को खत्म करने के लिए आइसोप्रोटान दवा का इस्तेमाल किया जाता है: 

आइसोप्रोटान दवा को ढाई एमएल प्रति लीटर पानी में मिलाकर दो बार छिड़काव करें. 

सल्फोसल्फ्यूरान 75 जी या आइसोप्रोटयूरान 75 प्रतिशत डब्ल्यू टी का इस्तेमाल करें. 

सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रतिशत 13.500 ग्राम दवा 6 लीटर पानी में घोलकर और 500 मिलीलीटर साल्वेन्ट मिलाकर 3 से 4 सौ लीटर पानी में प्रति एकड़ छिड़काव करें.


कुछ अन्य जरूरी बातें - 

1. Bread Wheat:- T. aestivum (2n6x42): यह भारत में कुल क्षेत्रफल का 95% है, जो उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, पश्चिमी बंगाल, असम, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू & कश्मीर में लगायी जाती है।

2. Macaroni/Durum wheat:- T. durum (2n 4x 28):- यह भारत में कुल क्षेत्रफल का 4% है, जो मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात में लगायी जाती है। इसका उपयोग सूजी व स्वईया बनाने में किया जाता है।

3. Emmer Wheat:- T. dicoccum (2n 4x 28): यह भारत में कुल क्षेत्रफल का 1% है, जो Karnataka, Maharastra & Tamil Nadu में लगायी 

गेंहू में वसा की मात्राः- 1.5-2%

भारत का गेहूं उत्पादन में चीन के बाद दूसरा स्थान है, भारत कुल विश्व का 12% गेहूं का उत्पादन करता है।

भारत में सर्वाधिक गेहूँ का उत्पादन व क्षेत्रफल उत्तरप्रदेश में है तथा उत्पादकता पंजाब की है।

गेहूँ C, व LDP है।

गेहूं का बोना जीन Norin - 10 है।

Norin-10 की खोज Gonjiro Inazuka ने की थी।

Norin-10 का व्यावसायिक उपयोग Norman Borlaug ने किया था।

 गेहूँ का परीक्षण भार 40 ग्राम है।


मैक्सिकन गेहूं को CIMMYT (मैक्सिको) में डॉ. नॉर्मन ई. बोरलॉग द्वारा विकसित किया गया था। 1963 में भारत सरकार ने रॉकफेलर फाउंडेशन की मदद से 100 किलो गेहूं [सोनोरा 64, सोनोरा 63 और लर्मा रोजा (सिंगल जीन) का आयात  किया।

गेहूं की कटाई

किसान भाई जब आप की फसल में 13-15% नमी हो तब अपने फसल की कटाई करनी चाहिए

गेहूँ गहाई के दौरान बीज व भूसे का अनुपात 1:1.5 तथा बोनी जातियों में 1:1.25 होता है।

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