हम हैं जिगर के पक्के, हिम्मत भरी जवानी।
पानी पे भी लिखेंगे, अमरत्व की कहानी।।
चाहा है जिसको उसको, पाकर के हम रहेंगे।
अपनी विजय पताका, फहरा के हम रहेंगे।।
बेवक्त, वक्त है यह, बस इसलिए रुके हैं।
लेकिन न सोच लेना, हम आज तक झुके हैं।।
होगा न वक्त जाया, हैं कंठ पर भवानी।
पानी पे भी -----1
चिंता नहीं किसी की, परिणाम जानता हूॅं।
आयेगा जो मेरे सर, इल्जाम जानता हूॅं।।
गीता भी जानता हूॅं, मृत्यु न टल सकेगी।
लेकिन समय से पहले, हमको न छल सकेगी।।
हाॅं वीर वंशजों की, अपने हैं हम निशानी।
पानी पे भी ----2
कह दो सफर अधूरा, कैसे मैं छोड़ पाऊॅं।
खुद से किया जो वादा, हर हाल में निभाऊॅं।।
हम सिंहनी की गोदी, में खेलकर पले हैं।
बस इसलिए ही सबसे,हॅंसकर गले मिले हैं।।
जाया नहीं करेंगे, उस दूध की गुमानी।
पानी पे भी ----3
रचनाकार
धीरेन्द्र सिंह तोमर धीरू
उत्तर प्रदेश पुलिस।
पता लखनऊ।