बहराइच विशेष वार्ता। कृषि विज्ञानं केंद्र नानपारा पर संचालित फसल अवशेष प्रबंधन परियोजना के अंतर्गत पांच दिवसीय प्रशिक्षण का समापन हुआ ।केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. शशिकांत बरगाह एवं परियोजना के नोडल अधिकारी सुनील कुमार ने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन मिट्टी एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए एक बहुत छोटा लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कदम है जो प्रत्येक किसान को उठाना अत्यन्त आवश्यक है ।
इस कार्य को गति देने के लिए सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहित कर रही है । कारण लाभदायक कीट व सूक्ष्मजीवों की संख्या में गिरावट आती है । केंद्र के उद्यान विशेषज्ञ उमेश कुमार ने बताया कि फसल अवशेष भारत में पशुधन के आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। किसानों के स्तर पर समय की कमी और लागत के बोझ के कारण खेतों में काफी मात्रा में फसल अवशेषों को जला दिया जाता है। इसी क्रम में केंद्र के फसल सुरक्षा विशेषज्ञ डॉक्टर पीके सिंह ने बताया कि कटाई की उपयुक्त मशीनों के उपयोग से अधिक मात्रा में फसल अवशेषों की प्राप्ति सुनिश्चित हो सकती है और फसल अवशेषों की बर्बादी को कम किया जा सकता है। उन्होने बताया कि फसल कटाई के बाद बचे पुआल को जलाने का एक तरीका यह है कि खेतों को अगले वसंत में बीज बोने के लिए तैयार किया जा सके । हालांकि, कुछ किसानों को सामान्य तरीकों से पुआल से निपटना मुश्किल लगता है। खेतों में फसल अवशेष को जलाने के बदले खेत की सफाई के लिए बेलर मशीन का प्रयोग, फसल के अवशेष को खेतों में जलाने के बदले वर्मी कंपोस्ट बनाने, मिट्टी में मिलाने, पलवार (मल्चिग) विधि से खेती आदि में व्यवहार कर मिट्टी को बचाना आदि, हैप्पी सीडर से गेहूं की बोआई की जानी चाहिए । प्रशिक्षण के समापन पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे किसानों को प्रमाण पत्र वितरित कर कार्यक्रम का समापन किया गया इस मौके पर काफी संख्या में किसान उपस्थित रहे।