छात्र छात्राओं को फसल अवशेष प्रबंधन की दी गई जानकारी

Vishesh Varta (विशेष वार्ता)
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मिथिलेश जायसवाल

 ब्यूरो चीफ 


बहराइच। कृषि विज्ञानं केंद्र नानपारा पर संचालित फसल अवशेष प्रवंधन परियोजना के अंतर्गत मिथलेश नंदनी रेशमा आरिफ पीजी कॉलेज नानपारा  विकास खंड बलहा  में मोबिलाइजेशन ऑफ़ स्कूल स्टूडेंट के तहत इन सीटू फसल अबशेष  प्रवंधन परियोजना पर 175 स्कूल के विधार्थियों को जागरुक करते हुए प्रश्नोतरी व निबंध कार्यक्रमों का संचालन करते हुए छात्रों को पुरस्कृत भी किया गया । 

परियोजना के नोडल अधिकारी सुनील कुमार ने बताया कि फसलों के अवशेष जलाने के बजाय आधुनिक तकनीक का प्रयोग करते हुए उसे खेतों में ही मिला देना चाहिए। ऐसा करने से खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।केंद्र के उद्यान विशेषज्ञ उमेश कुमार ने बताया कि कृषि अपशिष्ट को कृषि उत्पादों जैसे फलों सब्जियों डेयरी और अनाज साथ ही मांस मुर्गी और फसलों की खेती और प्रसंस्करण के बाद बचे हुए अपशिष्ट के रूप में परिभाषित किया जाता है। केंद्र के डॉक्टर सूर्य बलि सिंह ने बताया कि खेतों मुर्गी पालन घरों और बूचड़खानों से निकलने वाला उर्वरक और अन्य अपशिष्ट फसल का अपशिष्ट खेतों से निकलने वाला उर्वरक पानी हवा या मिट्टी में प्रवेश करने वाले कीटनाशक और खेतों से निकलने वाला नमक और अवशेष शामिल हैं। केंद्र के फसल सुरक्षा विशेषज्ञ डॉक्टर पीके सिंह ने बताया कि फसल अवशेषों का प्रबंधन कर फसलों के समय में बुआई कर अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। फसल अवशेष का प्रबंधन करने से मृदा की भौतिक रासायनिक एवं जैविक गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है। फसल अवशेष मृदा में जल धारण क्षमता को बढ़ाता है। जिससे फसल को लंबे अवधि तक मृदा जल प्राप्त होता है। कार्यक्रम में  प्रधानाचार्य डॉक्टर परमानन्द पांडे  सहित प्रबन्धक  शैलेन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने भी पराली प्रबंधन  पर छात्रों व बालिकाओं को कार्यक्रम के मानक को अपने गाँव-गाँव जाकर मृदा संरक्षण का आह्वाहन करने को कहा । इस मौके पर काफी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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