बहराइच। आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र बहराइच प्रथम द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन परियोजना के अंतर्गत विकास खंड स्तरीय जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन विकास खंड चित्तौरा के डीहा में वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. संदीप कुमार के दिशा निर्देशन में सम्पन्न कराया गया। केंद्र के बैज्ञानिक डा. शैलेन्द्र सिंह ने बताया कि पूसा डी कंपोजर एक बायोएंजाइम है। ये कैप्सूल के रूप में किसान इसका उपयोग कर सकते है। इन कैप्सूल से बना घोल धान की पराली को सड़ा सकता है. इतना ही नहीं इस डी कंपोजर के जरिए जैविक खाद का भी उत्पादन किया जा सकता हैं। जो मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढ़ाता है। इसके प्रयोग से किसानों को पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि इससे बने घोल का छिड़काव करके उसे मिट्टी में मिला दिया जाता है।
डा. अरुण कुमार राजभर ने बताया कि पराली जलाने से मिट्टी और जीव-जंतुओं को कई तरह के नुकसान होते हैं। पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है। इससे मिट्टी में मौजूद लाभकारी जीव-जंतु खत्म हो जाते हैं पराली जलाने से मिट्टी में अनुपजाऊ तत्व सक्रिय हो जाते हैं। साथ हि पराली जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है, जिससे मिट्टी की जैविक संरचना पर बुरा असर पड़ता है। पराली जलाने से कार्बनडाइऑक्साइड,कार्बनमोनोऑक्साइड,नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फ़र ऑक्साइड, और मीथेन जैसी गैसें निकलती हैं। जो वायु प्रदूषण का कारण बनती हैं इससे आस-पास के इलाके में धुंध आती है और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। पराली जलाने से आस-पास की फसलों और आबादी में आग लगने का खतरा रहता है। पराली जलाने से सांस लेने में तकलीफ़, एलर्जी, और आंखों में जलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। किसानों में प्रमुख रूप से बब्लू, अमित, राहुल, आरती, राम कुमार, सरजू प्रसाद, उपेन्द्र, संगीता, फूलमती, रामदेवी, मीना, पुष्पा देवी, संगीता, सुनीता आदि किसान शामिल उपस्थित रहे।